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काश्मीरी पण्डितों का 19 जनवरी 1990 की भयानक नरसंहार की इतिहास


कश्मीर घाटी के निवासी हिन्दुओं को उनके ऊपर हुए अत्याचार एवम् नरसंहार के पश्चात राजनीतिक लाभ लेने के लिए नेताओ द्वारा जातिवाद को बढ़ावा दिया गया और 'काश्मीरी हिन्दू पण्डित' या काश्मीरी ब्राह्मण कहआ गया हैं। सदियों से कश्मीर में रह रहे कश्मीरी हिन्दू पंडितों को 1990 में मुसलमानों द्वारा प्रायोजित आतंकवाद की कारण से घाटी छोड़नी पड़ी या उन्हें जबरन निकाल दिया गया। पनुन कश्मीर काश्मीरी पंडितों का संगठन है।

कश्मीर में हिंदुओं पर कहर टूटने का सिलसिला 1989 जिहाद के लिए गठित मुसलमानों ने शुरू किया था। कश्मीरी हिंदू पडित की दुकानें, कारखाने, मंदिर और घर जला दिए गए हिंदुओं के दरवाजों पर धमकी भरे पोस्टरों को पोस्ट किया गया और उन्हें तुरंत कश्मीर छोड़ने के लिए कहा गया। कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन जायदाद छोड़कर रिफ्यूजी कैंपों में रहने को मजबूर हो गए। 30000 से अधिक हिंदू महिला और पुरुषों की हुई थी हत्या - घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई।

19 जनवरी 1990 की घटना कश्मीर की इतिहास का सबसे दुखद अध्याय है। 19 जनवरी 1990 को नामुराद कट्टरपंथियों ने ऐलान कर दिया कि कश्मीरी पंडित काफिर है। इस ऐलान के साथ कट्टरपंथियों ने कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ने और इस्लाम कबूल करने के लिए जोर-ज़बरजस्ती करने लगे।

कट्टरपंथियों का आतंक कश्मीर मे़ बढता जा रहा था। नतीजतन मार्च 1990 तक लगभग 1 लाख 6 सहस्त्र कश्मीरी पंडितो को अपना घरबार छोड़कर कश्मीर से भागना पड़ा। मार्च 1990 तक कश्मीर में हिंदू समुदाय के हर वर्ग की बड़े पैमाने पर हत्याए हुई। जिसमें हिंदू अधिकारी बुद्धिजीवी से लेकर कारोबारी एवं अन्य लोग भी शामिल थे। कश्मीरी पंडित इस दुनिया की सबसे सहनशील समुदाय है इतने बड़े विस्थापन और अत्याचार के बाद एक भी कश्मीरी पंडित ने ना तो हथियार उठाये और ना ही किसी हिंसक आंदोलन किया। ऐसा उदाहरण विश्व इतिहास में दूसरा नही है।

यह बात विश्व चर्चित है की पाकिस्तान जैसे मुस्लिम दे में aअल्पसंख्यक वर्ग पर अत्याचार होता है परन्तु भारत जैसे महान देश में बहुसंख्यक समुदाय पर इतना बड़ा अत्याचार हुआ और उस बात को 40 साल होने को आए कीजिए ने सुध नहीं ली

यह इस देश का दुर्भाग्य ही है कि यह के पूज्य लोग अपने ही देश में सरानर्था जीवन जी रहे है

कश्मीरी पंडितों का पलायन

भारत के विभाजन के तुरंत बाद ही कश्मीर पर पाकिस्तान ने कबाइलियों के साथ मिलकर आक्रमण कर दिया और बेरहमी से कई दिनों तक कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार किए गए, क्योंकि पंडित नेहरू ने सेना को आदेश देने में बहुत देर कर दी थी। इस देरी के कारण जहां पकिस्तान ने कश्मीर के एक तिहाई भू-भाग पर कब्जा कर लिया, वहीं उसने कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम कर उसे पंडित विहीन कर दिया।

24 अक्टूबर 1947 की बात है, पाकिस्तान ने पठान जातियों के कश्मीर पर आक्रमण को उकसाया, भड़काया और समर्थन दिया। तब तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद का आग्रह किया। नेशनल कांफ्रेंस [नेकां], जो कश्मीर सबसे बड़ा लोकप्रिय संगठन था व उसके अध्यक्ष शेख अब्दुल्ला थे, ने भी भारत से रक्षा की अपील की। पहले अलगाववादी संगठन ने कश्मीरी पंडितों से केंद्र सरकार के खिलाफ विद्रोह करने के लिए कहा था, लेकिन जब पंडितों ने ऐसा करने से इनकार दिया तो उनका संहार किया जाने लगा। 4 जनवरी 1990 को कश्मीर का यह मंजर देखकर कश्मीर से 1.5 लाख हिंदू पलायन कर गए।

दरअसल 1989 तक कश्मीर घाटी के हालात पूरी तरह बिगड़ चुके थे। पाकिस्तान परस्त दर्जनों आतंकी संगठनों घाटी में समानांतर सरकार चलाना शुरू कर चुके थे। इन संगठनों ने जम्मू कश्मीर
 लिबरेशन फ्रंट मुख्य था।

केंद्र में राजीव गांधी की सरकार के दौरान ही जेकेएलएफ के आतंकियों ने कश्मीरी हिंदूओं पर हमले शुरू कर दिये थे। जगमोहन की तैनाती राज्यपाल के तौर पर 19 जनवरी 1990 को हुई। लेकिन इससे पहले और जगमोहन के शुरूआती दिनों में हालात काबू से बाहर आ चुके थे।

14 सितंबर 1989- पंडित टीकालाल टपलू की हत्या, टीकालाल कश्मीर घाटी के प्रमुख राष्ट्रवादी नेता थे। लेकिन आतंकियों ने सबसे पहले उन्हें निशाना बनाकर अपने इरादे साफ कर दिये।

4 नवंबर 1989, टपलू की हत्या के मात्र सात सप्ताह बाद जस्टिस नीलकंठ गंजू की हत्या कर दी गयी। सन 1989 तक पं० नीलकंठ गंजू- जिन्होंने मकबूल बट को फांसी की सजा सुनाई थी- हाई कोर्ट के जज बन चुके थे।

वे 4 नवंबर 1989 को दिल्ली से लौटे थे और उसी दिन श्रीनगर के हरि सिंह हाई स्ट्रीट मार्केट के समीप स्थित उच्च न्यायालय के पास ही आतंकियों ने उन्हें गोली मार दी थी। इस वारदात से डर कर आसपास के दूकानदार और पुलिसकर्मी भाग खड़े हुए और खून से लथपथ जस्टिस गंजू के पास दो घंटे तक कोई नहीं आया।

4 जनवरी सन 1990 को स्थानीय उर्दू अखबार में हिज्बुल मुजाहिद्दीन ने बड़े बड़े अक्षरों में प्रेस विज्ञप्ति दी कि -

या तो इस्लाम क़ुबूल करो या फिर घर छोड़कर चले जाओ.

5 जनवरी सन 1990 की सुबह गिरिजा पण्डित और उनके परिवार के लिए एक काली सुबह बनकर आयी। गिरजा की 60 वर्षीय माँ का शव जंगल में मिला उनके साथ बलात्कार किया गया था, उनकी आंखों को फोड़ दिया गया था, पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उनके साथ गैंगरेप के बाद हत्या की बात सामने आई. उसके अगली सुबह गिरजा की बेटी गायब हो गयी जिसका आजतक कुछ पता नहीं चला।

7 जनवरी सन 1990 को गिरजा पण्डित ने सपरिवार घर छोड़ दिया और कहीं चले गये, ये था घाटी से किसी पण्डित का पहला पलायन, घाटी में पाकिस्तान के पाँव जमना, घाटी में हिज्बुल मुजाहिद्दीन का राज और भारत सरकार की असफलता और जिन्ना प्रेम ने कश्मीर को एक ऐसे गृहयुद्ध में धकेल दिया था, जिसका अंजाम बर्बादी और केवल बर्बादी थी।

19 जनवरी सन 1990 को सभी कश्मीरी पण्डितों के घर के सामने नोट लिखकर चिपका दिया गया - "कश्मीर छोड़ो या अंजाम भुगतो या इस्लाम अपनाओ."

19 जनवरी सन1990,इन सब बढ़ते हुए विवादों के बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री फ़ारुख अब्दुल्ला ने इस्तीफा दे दिया और प्रदेश में राज्यपाल शासन लग गया. तत्कालीन राज्यपाल गिरीश चन्द्र सक्सेना ने केंद्र सरकार से सेना भेजने की संस्तुति भेजी. लेकिन तब तक लाखों कश्मीरी मुसलमान सड़कों पर आ गये, बेनजीर भुट्टो ने पाकिस्तान से रेडियो के माध्यम से भड़काना शुरू कर दिया, स्थानीय नागरिकों को पाकिस्तान की घड़ी से समय मिलाने को कहा गया, सभी महिलाओं और पुरुषों को शरियत के हिसाब से पहनावा और रहना अनिवार्य कर दिया गया. बलात्कार और लूटपाट के कारण जन्नत-ए-हिन्द, जहन्नुम-ए-हिन्द बनता जा रहा था. सैकड़ों कश्मीरी हिंदुओं की बहन बेटियों के साथ सरेआम बलात्कार किया गया फिर उनके नग्न बदन को पेड़ों से लटका दिया गया.

19 और 20 जनवरी 1990 की कश्मीर घाटी की सर्द रातों में मस्जिदों से एलान किये गए कि सभी कश्मीरी पंडित कश्मीर छोड़ कर चले जायें, अपनी पत्नी और बेटियों को भी यहीं छोड़े । हम अपने छह माह पहले अपने खून पसीने से बनाये मकान, दुकान और खेत ,बगीचे छोड़कर मुश्किल से जान बचाकर भागे , 1500 मन्दिर नष्ट कर दिए गए लगभग 5000 कश्मीरी हिन्दुओ की हत्या की गई । ठंडे स्थान पर रहने के कारण कई कश्मीरी हिन्दू दिल्ली की मई जून की गर्मी सहन नही कर सके और मारे गए । केम्पों में सांप बिच्छु के काटने से कई लोग मारे गए

23 जनवरी 1990 को 235 से भी ज्यादा कश्मीरी पण्डितों की अधजली हुई लाश घाटी की सड़कों पर मिली, छोटे छोटे बच्चों के शव कश्मीर के सड़कों मिलने शुरू हो गये, बच्चों के गले तार से घोंटे गये और कुल्हाड़ी से काट दिया गया महिलाओं को बंधक बना कर उनके परिवार के सामने ही सामूहिक बलात्कार किया गया, आँखों में राड घुसेड़ दिया गया, स्तन काट कर फेंक दिया, हाथ पैर काट कर उनके टुकड़े कर कर फेंके गये, मन्दिरों को पुजारियों की हत्या करके उनके खून से रंग दिया इष्ट देवताओं और भगवान के मूर्तियों को तोड़ दिया गया.

24 जनवरी सन 1990 को तत्कालीन राज्यपाल ने कश्मीर बिगड़ते हालात देखकर फिर से केंद्र सरकार को रिमाइंडर भेजा लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री कार्यालय से कोई जवाब नहीं आया उसके बाद राज्यपाल ने विपक्ष के नेता राजीव गाँधी को एक पत्र लिखा जिसमें कश्मीर की बढ़ती समस्याओं का जिक्र था, उस पत्र के जवाब में भी कुछ नहीं आया.

26 जनवरी सन 1990 को भारत अपना 38 वाँ गणतंत्र दिवस मना रहा था उस समय कश्मीर के मूलनिवासी कश्मीरी पण्डित अपने खून एवम् मेहनत से सींचा हुआ कश्मीर छोड़ने को विवश हो गये थे, वो कश्मीर जहाँ की मिट्टी में पले बढ़े थे उस मिट्टी में दफन होने का ख्वाब उनकी आँखों से टूटता जा रहा था. 26 जनवरी की रात कम से कम 3,50000 हजार कश्मीरी पण्डित, ये सिर्फ एक रात का पलायन है इससे पहले 9 जनवरी, 16 जनवरी, 19 जनवरी को हज़ारों लोग अपना घर बार धंधा पानी छोड़कर कश्मीर छोड़कर जा चुके थे, पलायन करने को विवश हो गये. 29 जनवरी तक घाटी एकदम से कश्मीरी पण्डितों से विहीन हो चुकी थी लेकिन लाशों के मिलने का सिलसिला रुक नहीं रहा था. 2 फरवरी सन 1990 को राज्यपाल ने साफ साफ शब्दों में लिखा -

अगर केंद्र ने अब कोई कदम ना उठाये तो हम कश्मीर गवाँ देंगे.

इस पत्र को सारे राज्यों के मुख्यमंत्री, भारत के प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता राजीव गांधी के साथ साथ बीजेपी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी को भी भेजा गया, पत्र मिलते ही बीजेपी का खेमा चौकन्ना हो गया और हज़ारों कार्यकर्ता प्रधानमंत्री कार्यालय पहुँच कर आमरण अनशन पर बैठ गये, राजीव गाँधी ने प्रधानमंत्री से दरख्वास्त की जल्द से जल्द इस मुद्दे पर कोई कार्यवाही की जाये.

6 फरवरी सन 1990 को केंद्रीय सुरक्षा बल के दो दस्ते अशांत घाटी में जा पहुँचे लेकिन उद्रवियों ने उनके ऊपर पत्थर और हथियारों से हमला कर दिया. सीआरपीएफ ने कश्मीर के पूरे हालात की समीक्षा करते हुए एक रिपोर्ट गृह मंत्रालय को भेज दी. तत्कालीन प्रधानमंत्री एवम् गृहमंत्री चन्द्रशेखर ने इस रिपोर्ट पर गौर करते हुए राष्ट्रपति को भेजते हुए अफ्स्पा लगाने का निवेदन किया. तत्कालीन राष्ट्रपति रामास्वामी वेंकटरमन ने तुरन्त कार्रवाई करते हुए AFSPA लगाने का निर्देश दे दिया।

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